● ग़ज़ल : तूं और मैं : ● इलियास शेख़
तूं अब दैरो-हरम
में हो यां,
मैं तो मेरे घर
में सोया ।
मैं हँसता फिरता
ईन गलियोंमें,
तूं हर शू
रूक-रूक के रोयां ।
मेरी तो आँखे ओझल
थी,
तुंने कुछ क्या
देखा गोया ?
वो मेरां साया ही
कब था ?
धूप में कुछ न
पाया, खोया ।
मैंने कल भीगी
आँखो को,
चन्द बीख़रे
ख्वाबो से धोया ।
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